दीन-दुखियों और बेसहारा लोगों के लिए मदर टेरेसा का पूरा जीवन रहा समर्पित। शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार
उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव समाज की सेवा करने के लिए ‘न्योछावर’ कर दिया। बीसवीं शताब्दी में गरीब, बेसहारा और पीड़ितों की सबसे बड़ी मसीहा के रूप में उन्हें याद किया जाता रहेगा। मूल रूप से वह भारत की नहीं थीं लेकिन उन्होंने इस देश के लाखों-करोड़ों लोगों की ‘मां’ के रूप में अपने आप को स्थापित किया। ‘वे ममता की मूरत थीं। दीन-दुखियों को गले लगाना और बीमार लोगों के चेहरे में मुस्कान लाने की कोशिश करना ही उनकी पहचान थी। वे अपनी मृत्यु तक निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा में लगी रहीं’। आपको बता दें कि उन पर गरीबों की सेवा करने के बदले उनका धर्म बदलकर ईसाई बनाने का आरोप लगाया गया, लेकिन उन्हें हमेशा खुद को मानव सेवा में लगाए रखा। आज हम बात करेंगे एक ऐसी महान शख्सियत की जो जवानी के दिनों 19 साल की आयु में भारत आईं थीं लेकिन यहां जब उन्होंने गरीबी, असहाय लोगों को देख उनकी भलाई और सेवा के लिए रहीं रहने का फैसला किया। उनका कहना था, ‘जख्म भरने वाले हाथ प्रार्थना करने वाले होंठ से कहीं ज्यादा पवित्र हैं’। हम बात कर रहे हैं मदर टेरेसा की। आज टेरेसा की 111वीं जयंती पर दुनिया उनको निस्वार्थ सेवा के लिए याद कर रही है। 20वीं सदी की महानतम मानवतावादियों में से एक मानी जाने वाली महिला थी। मदर टेरेसा कैथोलिक थीं, लेकिन उन्हें भारत की नागरिकता मिली हुई थी। अल्बानिया मूल की मदर टेरेसा ने कोलकाता में गरीबों और पीड़ित लोगों के लिए जो किया वो दुनिया में ‘अभूतपूर्व’ माना जाता है। उन्होंने 12 सदस्यों के साथ अपनी संस्था की शुरुआत की थी और अब यह संस्था 133 देशों में काम कर रही है। आज मदर टेरेसा के जन्मदिन पर आइए जानते हैं उनके जीवन और त्याग-समर्पण के बारे में।टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 में अल्बानिया में हुआ था, 19 साल में आईं थीं भारतटेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को छोटे से देश अल्बानिया के संपन्न परिवार में हुआ था । वे अपने परिवार में सबसे छोटी संतान थीं और आठ साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया था। दुनिया उन्हें मदर टेरेसा के नाम से जानती है, लेकिन वास्तविक में उनका नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था। साल 1929 में वह भारत आईं थी। टेरेसा ने अपना पूरा जीवन गरीबों की सेवा में समर्पित कर दिया । वे भारत से विशेष ‘स्नेह’ रखती थीं। साल 1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों की सेवा का ‘संकल्प’ लिया था। उन्होंने साल 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ली थी। अपने जीवन के 68 साल भारत में रहकर मदर टेरेसा ने लोगों की सेवा की। निस्वार्थ सेवा के लिए टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की । उन्होंने भारत में कुष्ठ रोगियों और अनाथों की सेवा करने में पूरी जिंदगी लगा दी। मदर टेरेसा अपनी मृत्यु तक कोलकाता में ही रहीं और आज भी उनकी संस्था गरीबों के लिए काम कर रही है। बता दें कि उन्हें 1979 में ‘नोबेल शांति पुरस्कार के साथ देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न, टेम्पटन प्राइज, ऑर्डर ऑफ मेरिट और पद्मश्री से भी नवाजा गया है’। वेटिकन सिटी में एक समारोह के दौरान रोमन कैथोलिक चर्च के पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को ‘संत’ की उपाधि दी। दुनिया भर से आए लाखों लोग इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बने थे। बता दें कि लगातार गिरती सेहत की वजह से 5 सितंबर 1997 को उनकी मृत्यु हो गई। टेरेसा की दी गई सीखों ने समाज में शांति और प्रेम बनाए रखने का काम किया है। आज उनकी जयंती पर न केवल देशभर में बल्कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में उन्हें याद किया जा रहा है ।