महायोगी पायलट बाबा को हरिद्वार में महासमाधि, संतों और भक्तों की भारी भीड़ जुटी

श्री पंचदश नाम जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर महायोगी पायलट बाबा मंगलवार को मुंबई के अस्पताल में ब्रह्मलीन हो गए थे। उनके पार्थिव शरीर को आश्रम लाया गया था।

महायोगी पायलट बाबा को उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार आज हरिद्वार के आश्रम में महासमाधि दी गई। उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए बड़ी संख्या में संत, भक्त, और अनुयायी जुटे। सभी 13 अखाड़ों के प्रमुख, महामंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, और देश के प्रतिष्ठित उद्योगपति व व्यवसायी उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। उनके शिष्यों, महामंडलेश्वर साध्वी चेतनानंद गिरी महाराज और साध्वी श्रद्धा गिरी महाराज ने उन्हें महासमाधि दी। इसके बाद शंभू रोटए धूल लौट और तिये का कार्यक्रम हुआ।

बुधवार को उनका पार्थिव शरीर मुंबई से हरिद्वार के आश्रम लाया गया। जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर को श्रद्धांजलि देने के लिए संतों, श्रद्धालुओं और भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी।

श्री पंचदश नाम जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर महायोगी पायलट बाबा का मंगलवार को मुंबई के अस्पताल में निधन हो गया। उनके पार्थिव शरीर को आश्रम लाया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।

श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि महाराज, जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमहंत प्रेम गिरि महाराज, श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हिंदू यूनाइटेड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज, जूना अखाड़े के राष्ट्रीय सचिव श्रीमहंत महेशपुरी, सचिव श्रीमहंत शैलेंद्र गिरि महाराज, सचिव सहजानंद गिरी महाराज, थानापति धर्मेंद्र गिरी महाराज, प्रेमानंद गिरी महाराज, साध्वी चेतनानंद गिरी महाराज, साध्वी श्रद्धा गिरी महाराज सहित जूना अखाड़े के महंत, श्रीमहंत, महामंडलेश्वर और हजारों साधु-संतों एवं भक्तों ने महायोगी पायलट बाबा को श्रद्धांजलि दी।

कौन थे पायलट बाबा

पायलट बाबा का जन्म बिहार के रोहतास जिले के सासाराम में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनका प्रारंभिक नाम कपिल सिंह था। उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की और इसके बाद भारतीय वायु सेना में शामिल हुए। वायु सेना में वे विंग कमांडर के पद पर कार्यरत थे। बाबा ने 1962, 1965 और 1971 की युद्धों में अपनी सेवाएं दीं, जिसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया।