Uttarakhand: भूस्खलन की रोकथाम को जीएसआई लगाएगा अर्ली वार्निंग सिस्टम, उत्तरकाशी-चमोली-रुद्रप्रयाग-टिहरी पर फोकस

उत्तराखंड में भूस्खलन के लिहाज से उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग और टिहरी जिले सबसे ज्यादा संवेदनशील माने जाते हैं। इन क्षेत्रों में अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित करने की तैयारी की जा रही है।

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) उत्तराखंड के चार जिलों में भूस्खलन से निपटने के लिए अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए वर्तमान में परीक्षण चल रहा है। परीक्षण सफल होने के बाद इस सिस्टम को स्थापित किया जाएगा, जिससे समय रहते भूस्खलन की चेतावनी जारी की जा सकेगी और संभावित नुकसान को कम किया जा सकेगा।

 

जीएसआई देहरादून के निदेशक रवि नेगी ने बताया कि उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग और टिहरी जिले भूस्खलन की दृष्टि से सबसे अधिक संवेदनशील हैं। इन्हीं जिलों में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने की योजना है। वहीं, आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास सचिव विनोद कुमार सुमन ने कहा कि जीएसआई इस तकनीक को विकसित करने पर काम कर रहा है। इसके लागू होने से बचाव और सुरक्षा कार्य और भी तेज़ व प्रभावी हो जाएंगे।

 

अध्ययन को साझा करें, लोगों तक पहुंचाकर करेंगे जागरूक : सुमन

आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास सचिव विनोद कुमार सुमन ने कहा कि अध्ययन संस्थान जो भी शोध कर रहे हैं, उसकी जानकारी विभाग तक सरल और समझने योग्य तरीके से पहुंचाई जानी चाहिए। विभाग इस जानकारी का इस्तेमाल लोगों को जागरूक करने के लिए करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्वानुमान ऐसे समय पर जारी हों कि लोग समय रहते सुरक्षात्मक कदम उठा सकें और नुकसान को कम किया जा सके।

 

सचिव सुमन हरिद्वार बाईपास रोड स्थित एक होटल में आयोजित कार्यशाला में बोल रहे थे। इस कार्यशाला का विषय था– भूस्खलन आपदा जोखिम न्यूनीकरण, विज्ञान और सुशासन के माध्यम से जागरूकता और प्रतिक्रिया को मजबूत बनाना। सत्र में आईआईआरएस के वैज्ञानिक डॉ. सोवन लाल ने कहा कि भूस्खलन से बचाव के तरीकों को सीखना बेहद ज़रूरी है। उन्होंने बताया कि जानकारी जुटाने के लिए सैटेलाइट के साथ-साथ ड्रोन तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि कोई क्षेत्र संवेदनशील भले ही शांत दिखे, लेकिन उसकी लगातार निगरानी और अध्ययन ज़रूरी है।

 

बारिश के समय भूस्खलन की समस्या अधिक

कार्यशाला में जीएसआई के उप महानिदेशक संजीव कुमार और डॉ. हरीश बहुगुणा ने भी अपने विचार रखे। विशेषज्ञों ने बताया कि ज्यादातर भूस्खलन की घटनाएं बरसात के समय होती हैं, क्योंकि बारिश इन्हें ट्रिगर करती है। डॉ. बहुगुणा ने कहा कि अर्ली वार्निंग सिस्टम से अच्छे नतीजे मिल रहे हैं और अगर रियल टाइम डेटा उपलब्ध हो तो पूर्वानुमान जारी करना और भी आसान हो जाता है। उन्होंने बताया कि राज्य में सबसे ज्यादा भूस्खलन चमोली जिले में होते हैं, जबकि बागेश्वर में भी कई घटनाएं दर्ज होती हैं।

 

उन्होंने आल वेदर स्टेशनों की जानकारी साझा करते हुए बताया कि फिलहाल राज्य में कितने क्षेत्र इनसे कवर हैं और आगे कितने नए स्टेशनों की आवश्यकता होगी। इससे पहले उद्घाटन सत्र को कुलपति सुरेखा डंगवाल ने संबोधित किया। कार्यशाला की अध्यक्षता जीएसआई के अपर महानिदेशक राजेंद्र कुमार ने की। इस मौके पर उप महानिदेशक डॉ. सी.डी. सिंह, भूवैज्ञानिक देवेंद्र सिंह समेत वाडिया संस्थान, सीबीआरआई सहित 28 संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए।

 

जीएसआई व आपदा प्रबंधन विभाग में हुआ एमओयू भी

कार्यशाला में जीएसआई व आपदा प्रबंधन विभाग में एमओयू हुआ। सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि एमओयू होने पर अध्ययन, सूचनाओं को साझा करने में सुगमता होगी।