जंगल व मैदान में यह मेला जुटता है और मंदिर में रात्रि जागरण पर्व मनाया जाता है।
सूबे के कैबिनेट मंत्री सौरव ने मां सती अनसूया मेले का शुभारंभ करते हुए कहा कि मेले हमारी सांस्कृतिक धरोहर रहे हैं । यह मेला सदियों से मां सती के जप- तप से चला आ रहा है उन्होंने मेले की सफलता की कामना की साथ ही प्रदेश वासियों की खुशहाली की कामना की ,इस अवसर पर उन्होंने मुख्यमंत्री की ओर से मेले को ₹15 लाख दिए जाने तथा 10 शौचालय निर्माण के साथ ही अन्य क्षेत्रीय समस्याओं को मुख्यमंत्री के साथ बैठकर तत्काल निस्तारण करने का आश्वासन भी जनता को दिया l इस अवसर पर उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही जन कल्याणकारी योजनाएं तथा अपने विभाग द्वारा किए जा रहे कार्यों का भी उल्लेख किया
पुत्रदायिनी के रूप में विख्यात माता अनुसूया देवी ने न जाने अब तक कितनी सूनी गोदें भर कर रख दी हैं। यही वजह है कि मां के जप – तप के फलस्वरूप ही आज भी हजारों लोगों के घर परिवार आवाद होते जा रहे हैं। मेले का शभारम्भ कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा द्वारा किया गया l
धार्मिक मान्यता के अनुसार मां अनुसूया देवी मंदिर के गर्भ गृह व अहाते में रात्रिभर जागकर ध्यान, जप – तप करने से भक्तों के भाग्य जाग उठते हैं और उनकी कोख हरी हो जाती हैं। इस रात्रि जागरण के बीच नींद के किसी अलसाये झोंके में कोई स्वप्न दिख गया तो मान लिया जाता है कि क रूणा—मूर्ति देवी ने उनकी गुहार सुन ली है।
सदियों से रात्रि जागरण की यह परंपरा निसंतान दंपतियों को दत्तात्रेय जयंती की चतुर्थदशी व पंचमी को मिलता है।
पुराणों में माता अनुसूया को सर्वश्रेष्ठ पुत्रदायिनी देवी बताया गया है। इसके पीछे भी एक कथा सर्वविदित है। बताया जाता है कि महर्षि अत्रि लंबी तपस्या पर बैठे थे। कठोर तप देकर सभी देव घबरा गए। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश उनके पास गए। बोले – हम बेहद पसन्न हैं। कहिए आपको क्या चाहिए। महर्षि बोले – तपस्या मेरा स्वभाव है। मुझे कुछ नहीं चाहिए। हां, सती अनुसूया देवी से पूछ लो। तीनों देव मां अनुसूया के पास पहुंचे तो माता ने भी कुछ भी चीज मांगने से मना कर दिया। तीनों देवों को यह सब बहुत बुरा लगा। तीनों देवों ने सोचा स्त्री की सबसे बड़ी इच्छा संतान प्राप्ति की होती है। क्यो न इस बारे में पूछ लिया जाए। उन्होने देवी से कहा— संतान की इच्छा तो होगी ही। देवी ने कहा – आप तीनों भी तो मेरे बच्चे हैं। देवों ने सोचा यह उनका कैसा उपहास है। इसे अहं हो गया है। तीनों देवों ने परीक्षा लेने की ठानी। उन्होने देवी से कहा – तो तुम बच्चों के सामने नग्न रूप में आ जाआे। देवी के तप के बलबूते पर तत्काल तीनों देव शिशु बन गए। देवी ने उन्हे गोद में बैठा लिया। तीनों देवों को सत्य की अनुभूति हुई । उन्होने माता से बरबस क्षमा मांग ली। तदनंतर में ब्रह्मा चंद्रमां के रूप में, शिव दुर्वासा के रूप में तथा विष्णु ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया। तब से माता अनुसूया ‘पुत्रदा’ के रूप मेें विख्यात हो गई। इसी के चलते यहां प्रतिवर्ष अनुसूया देवी का दत्तात्रेय जन्म जयंती मेला आयोजित किया जाता है।
बर्फीली चोटियों, घने – गहरे जंगलों के बीच बसा है माता अनुसूया देवी का मंदिर। प्रकृति प्रेमियों के लिए तो यह अद्भुत तपोभूमि है। मंडल अनुसूया गेट से 5 किमी का पैदल सफर तय कर ही माता के मंदिर में पहुंचा जाता है। मेले मे सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं भजन संध्या भी आयोजित होगी। महिला व युवक मंगल दलों तथा स्थानीय स्कूली छात्र-छात्राआें के रंगारंग कार्यक्रम भी आयोजित होंगे। अगले दिन 7 दिसंबर को प्रात:कालीन पूजा अर्चना, सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन के साथ ही पुरस्कार वितरण के साथ दोपहर देव डोलियों की विदाई होगी। वैसे अनुसूया देवी के दर्शनों के लिए साल भर यहां लोग आते रहते हैं। पुत्र कामना के लिए होने वाला रात्रि जागरण तो इसी खास अवसर पर मेले के रूप में जुटता है। इस मौके पर दूर- दूर से आने वाले निसंतान दंपतियों के अलावा हजारों नर- नारी इस मेले में जुटते हैं। जंगल व मैदान में यह मेला जुटता है और मंदिर में रात्रि जागरण पर्व मनाया जाता है। संतान की इच्छा वाली महिलाएं सायं से ही ध्यान जप में बैठ जाती है। इन्हें यहां की भाषा में ‘बरोही’ कहा जाता है। बरोही उनिंदे ही ध्यान मुद्रा में लंबी रात काट देते हैं। सुफल मिलते ही लोग अपने घरों को लौट आते हैं।