पूरे भारत देश मैं जब कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली का जश्न मनाया जाता है।
रिपोर्ट:- पवन नैथानी
महत्वपूर्ण बिन्दु:-
1:- दीपावली के एक माह बाद मनाई जाती है यहां दीपावली
2:- उस समय टिहरी जिले में राजशाही तंत्र था
3:- गढ़वाल के प्रिय नेता बीर भड़ माधो सिंह भण्डारी की झूठी शिकायत टिहरी नरेश से किसी ने कर दी थी
4:- उस दिन दिवाली थी अपने प्रिय नेता के चले जाने पर यहां के लोगों ने दिवाली नही मनाई थी
5:- दीपावली के ठीक एक माह बाद अपने प्रिय नेता के लौटने पर इन गांवों में दीपावली मनाई गई।
6:- तब से आज तक ये प्रथा चली आ रही है ,जब पूरे देश मे दीपावली का त्योहार मनाया जाता है तो इन गांवों में दीपावली नही मनाई जाती है
7:-सबसे अहम बात गेंहू की फसल में कैलापीर देवता के साथ सैकड़ों की संख्या में भक्त गेहूं की फसल में दौड़ लगाते है
8:- उस वक्त तो फसल को देखकर लगता है कि अब ये फसल दुबारा होना मुश्किल है मगर वो फसल और भी अधिक मात्रा में होती है
9:- तीन दिन तक मनाई जाती है दीपावली
विसुअल डिटेल्स:-
:- गेहूं की फसल को रोधते हुए देवता के पस्वा व भग्त
:- मंदिर में लगी भीड़ के विसुअल
:- कैलापीर के विसुअल
:- भैले घुमाकर दीपावली मनाते ग्रामीणों के विसुअल
पूरे भारत देश मैं जब कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली का जश्न मनाया जाता है, तब टिहरी गढवाल के थाती बूढाकेदार पट्टी और टिहरी जिले के जौनसार बावर क्षेत्र के लोग सामान्य दिनों की तरह अपने काम- धंधों में लगे रहते हैं।
इसके ठीक एक माह बाद मार्गशीर्ष अगहन की अमावस्या को वहाँ दिवाली मनाई जाती है, जिसका उत्सव तीन से चार दिन तक चलता है।
कई क्षेत्रों में इस दिवाली को ‘देवलांग’ नाम से भी जाना जाता है। इन क्षेत्रों में दिवाली का त्योहार एक माह बाद मनाने का कोई ठीक इतिहास तो नहीं मिलता। पर एक प्रचलित कहानी के अनुसार एक समय टिहरी नरेश से किसी व्यक्ति ने वीर माधो सिंह भंडारी की झूठी शिकायत की, जिस पर उन्हें दरबार में तत्काल हाजिर होने का आदेश दिया गया। उस दिन कार्तिक मास की दीपावली थी। रियासत के लोगों ने अपने प्रिय नेता को त्योहार के अवसर पर राजदरबार में बुलाए जाने के कारण दीपावली नहीं मनाई और इसके एक माह बाद भंडारी के लौटने पर अगहन माह में अमावस्या को दिवाली मनाई गई। शिवपुराण और लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार एक समय प्रजापति ब्रह्मा और सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर संघर्ष होने लगा। वे एक-दूसरे के वध के लिए तैयार हो गए। इससे सभी देवी, देवता व्याकुल हो उठे और उन्होंने देवाधिदेव शिवजी से प्रार्थना की। शिवजी उनकी प्रार्थना सुनकर विवाद स्थल पर ज्योतिर्लिंग (महाग्नि स्तम्भ) के रूपमें दोनों के बीच खड़े हो गए।
उस समय आकाशवाणी हुई कि दोनों में से जो इस ज्योतिर्लिंग के आदि और अंत का पता लगा लेगा वही श्रेष्ठ होगा। ब्रह्माजी ऊपर को उड़े और विष्णुजी नीचे की ओर गए। कई वर्षों तक वे दोनों खोज करते रहे लेकिन अंत में जहाँ से निकले थे, वहीं पहुँच गए। तब दोनों देवताओं ने माना कि कोई उनसे भी श्रेष्ठ है और वे उस ज्योतिर्मय स्तंभ को श्रेष्ठ मानने लगे। इन क्षेत्रों में महाभारत में वर्णित पांडवों का विशेष प्रभाव है। कुछ लोगों का कहना है कि कार्तिक मास की अमावस्या के समय भीम कहीं युद्ध में बाहर गए थे। इस कारण वहाँ दिवाली नहीं मनाई गई। जब वह युद्ध जीतकर आए तब खुशी में ठीक एक माह बाद दिवाली मनाई गई और यही परंपरा बन गई। कारण कुछ भी हो, लेकिन यह दिवाली जिसे इन क्षेत्रों में नई- दिवाली भी कहा जाता है
गुरु कैलापीर के साथ भग्त गेहूं की खेतों में दौड़ लगाते हैं
गुरु कैलापीर देवता टिहरी जनपद के अलावा उत्तरकाशी जिले के 180गांवों के आराध्य देव हैं।
नई टिहरी के भिलंगना पखंड के बूढाकेदार गांव में को गुरु कैलापीर देवता के मेले दिन सुबह ग्रामीण ढोल नगाड़ों के साथ मंदिर परिसर में एकत्र् होते हैं। इसके बाद देवता की पूजा अर्चना होती है। इसके बाद ग्रामीण देवता के पश्वा के मंदिर से बाहर आने का इंतजार करते हैं। फिर देवता की झंडी को मंदिर सेबाहर निकाला जाता है। पूजारी देवता के पश्वा को लेकर खेतों में जाते हैं। ग्रामीण उनके पीछे जाते हैं। अच्छी फसल व क्षेत्र की खुशहाली के लिए ग्रामीण देवताके पश्वा के साथ खेतों मेंदौड़ लगाते हैं। अंतिम चक्कर में ग्रामीण देवतापर पुआल चढातेहैं। इसके बाद महिलाएं आशीर्वाद लेने को वहां पहुंचती है। इस दौरान लोग मंदिर में साड़ी चढाते हैं। साथ ही देवता के पश्वा को अपनी समस्या बताते हैं। वैसे तो उत्तराखंड के कई क्षेत्रों टिहरी के जौनपुर प्रखंड, थौलधार, प्रतापनगर, बूढ़ाकेदार, के कई इलाकों में एक माह बाद दिवाली मनाई जाती है। लेकिन दिवाली मनाने के कारण भिन्न हैं।