यूसीसी पोर्टल पर विवाह, तलाक और लिव इन रिलेशन से संबंधित पंजीकरण के अलावा सभी तरह की वसीयत करने की सुविधा

यूसीसी पोर्टल पर विवाह, तलाक और लिव इन रिलेशन से संबंधित पंजीकरण के अलावा सभी तरह की वसीयत करने की सुविधा भी उपलब्ध करवाई जा रही है, जिसके नियमों और तकनीकी ढांचे पर विशेषज्ञों की एक टीम काम कर रही है।

अक्तूबर से उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद, विल भी ऑनलाइन रजिस्टर्ड होने लगेंगे। अब आम लोगों को अपनी संपत्ति की वसीयत कराने के लिए न तो हजारों रुपये खर्च करने पड़ेंगे, न ही रजिस्ट्रार कार्यालय या वकीलों के चक्कर लगाने पड़ेंगे।

यूसीसी के वेब पोर्टल पर रजिस्टर्ड होना बहुत आसान है और इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना होगा। यूसीसी के नियमों को लागू करने के लिए बनाया जा रहा वेब पोर्टल और मोबाइल एप्लीकेशन भी ऑनलाइन वसीयत रजिस्टर्ड करने के लिए विशेष सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं।

शत्रुघ्न सिंह, यूसीसी पोर्टल की नियमावली बनाने वाली समिति के अध्यक्ष और पूर्व मुख्य सचिव, ने बताया कि पोर्टल पर विवाह, तलाक और लिव इन रिलेशन से संबंधित पंजीकरण के अलावा सभी तरह की वसीयत करने की सुविधा भी उपलब्ध करवाई जा रही है, जिसकी तकनीक और नियमावली पर विशेषज्ञों की टीम काम कर रही है।

वसीयत का महत्व कम हो जाएगा

यूसीसी लागू होने के बाद, पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति में बेटियों को अपने पिता के समान अधिकार मिलने का कानून है। विशेष समिति इसे उत्तराखंड में लागू करने के लिए नियम बना रही है, जो पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन प्रक्रिया (यूजर फ्रैंडली) से सरल बनाया जा रहा है। विभिन्न धर्मों में पिता की संपत्ति पर बेटियों के अधिकार को लेकर अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं।

यूसीसी की स्थापना होने के बाद, विभिन्न धर्मों का पर्सनल लॉ खत्म हो जाएगा। ऐसे में वसीयत का कानूनी विकल्प अहम होगा। इसके जरिए कोई व्यक्ति अपनी खुद से बनाई गई संपत्ति को किसी के नाम करने या वितरित करने की इच्छा व्यक्त करने के लिए पोर्टल पर रजिस्टर्ड कर सकता है। स्पष्ट कर दें कि इस प्रक्रिया से वसीयत को लेकर जो भी प्रावधान हैं, वे बदल नहीं जाएंगे।

संपत्ति विवाद कम होगा

यूसीसी के बाद वसीयत कराने वालों की संख्या बढ़ेगी, लेकिन संपत्ति विवाद के अधिकांश मुकदमों में उत्तराधिकार का मुद्दा होगा। मौजूदा समय में वसीयत कराने के लिए हर रजिस्ट्रार या एडीएम को अपने कार्यालय में जाना होता है, जिससे पहले वकीलों से परामर्श लेने और दस्तावेज तैयार करने के लिए महंगी फीस देनी पड़ती है, जिससे आम तौर पर लोग वसीयत बनवाने से कतराते हैं।