राज्य में 2400 हेक्टेयर से अधिक जंगल हर साल जल रहे
पिछले दस वर्षों में जंगल की आग से 79 लोग मारे गए हैं। जबकि 29 लोग मर चुके हैं। सालाना 2400 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र प्रभावित होते हैं।
उत्तराखंड वन विभाग हर साल मैराथन बैठकों के बाद जंगल की आग की रोकथाम के लिए एक्शन प्लान बनाता है। वन विभाग के कर्मचारियों के साथ-साथ एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और कभी-कभी सेना भी इस काम में मदद करते हैं। शासन-प्रशासन भी इस काम में लगे हुए हैं, लेकिन इस साल, हर साल की तरह, विभाग के सारे इंतजाम जल गए।
राज्य में 2400 हेक्टेयर से अधिक जंगल हर साल जल रहे हैं। जिसमें पिछले दशक में 29 लोग मारे गए हैं और 79 झुलस गए हैं। पर्यावरणविद् कहते हैं कि जंगल को आग से बचाना असंभव है अगर सामुदायिक सहभागिता नहीं होगी। उधर, वन विभाग इस दिशा में काम कर रहा है।
इस साल गढ़वाल से कुमाऊं तक प्रदेश में पिछले वर्ष से अधिक जंगल धधके हैं। पिछले वर्ष 773 घटनाओं में 933 हेक्टेयर जंगल जला गया था। जंगल की आग से इस साल 1,144 घटनाओं में 1,574 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है, जिसमें तीन लोगों की मौत और तीन घायल हुए हैं।
वन विभाग ने पिछले दस वर्षों में पूरी तरह से निष्क्रिय जंगल जलने की घटनाओं को औसतन प्रति वर्ष 1,516 देखा है। हाल ही में सरकार और वन विभाग ने जंगल की आग को नियंत्रित करने का दावा किया है। सालाना करोड़ों रुपये भी इस पर खर्च किए जाते हैं, लेकिन पिछले साल की तुलना में वनाग्नि की घटनाएं बढ़ी हैं।
पर्यावरणविद् कहते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह जनता और वन विभाग के बीच कोई बातचीत नहीं होना है। जनता को वन विभाग ने नहीं समझाया कि जंगल लोगों के हैं। जब तक जनता जंगलों की आग को नियंत्रित नहीं करेगी क्रू स्टेशन और एक्शन प्लान के नाम पर मैराथन बैठकों से कुछ नहीं होगा।
मैती संस्था के संस्थापक पद्मश्री कल्याण सिंह रावत का कहना है कि वन विभाग जनसहयोग को जंगलों को आग से बचाने में पूरी तरह से असमर्थ है। आग नियंत्रण के लिए वन विभाग अलग-थलग है। वहीं लोगों का मानना है कि जंगल सरकार के हैं, इसलिए वन विभाग खुद जंगल को जलाता है जब से कोई लाभ नहीं मिलता।
जैव विविधता को हो रहा बड़ा नुकसान
उत्तराखंड में हर साल 2,400 हेक्टेयर से अधिक जंगल के जलने से जैव विविधता को भारी नुकसान हो रहा है। पर्यावरणविद् बताते हैं कि इससे मात्र पेड़-पौधे ही नहीं जल रहे, बल्कि वन्य-जीव भी इसमें झुलस रहे हैं। वन विभाग के पास इसके कोई आंकड़े नहीं हैं।
वन विभाग पर भी खड़े हो रहे सवाल
जंगल में आग लगाने के आरोप में वन विभाग इस साल अब तक 434 मुकदमे दर्ज कर चुका है। इसमें नामजद 65 और अज्ञात में 369 मामले दर्ज हैं। कुछ लोगों का आरोप है कि जंगल में आग लगाने में वन विभाग के लोगों का भी हाथ है। लगातार जंगल कट रहे हैं। पौधरोपण किए बिना इसके नाम पर लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं। इस पर पर्दा डालने के लिए विभाग के ही कुछ लोग जंगल में आग लगाते हैं, ताकि आग से सभी साक्ष्य जलकर खत्म हो जाएं।
प्रदेश में तीन जगह धधके जंगल
उत्तराखंड में रविवार को तीन जगह जंगल धधके। मसूरी वन प्रभाग के आरक्षित वन क्षेत्र में वनाग्नि की एक और वन पंचायत में दो घटनाएं हुई हैं, जिससे छह हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। इसे मिलाकर इस साल अब तक 1,574 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। विभाग का कहना है कि इस साल अब तक पशु मृत्यु एवं घायल का एक भी मामला नहीं है।
प्रदेश में बनाए गए हैं 1,438 क्रू स्टेशन, 174 वाॅच टावर
वन विभाग के मुताबिक, जंगल को आग से बचाने के लिए 1,438 क्रू स्टेशन बनाए गए हैं। इसमें 569 गढ़वाल और 644 कुमाऊं में हैं, जबकि 225 क्रू स्टेशन वन्यजीव क्षेत्र में हैं। इसके अलावा 174 वाॅच टावर बनाए गए हैं। विभाग ने हर जिले में वरिष्ठ अधिकारियों को नोडल अधिकारी बनाया है। जंगल में बार-बार आग लगाने वालों पर सख्त कार्रवाई करते हुए गैंगस्टर एक्ट लगाने के निर्देश हैं। वन संपदा को हुए नुकसान की भरपाई आग लगाने वालों से करने के निर्देश हैं। ऐसे लोगों पर लोक और निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम के तहत कार्रवाई होगी।
प्रदेश में हुईं वनाग्नि की घटनाएं एवं प्रभावित क्षेत्र
वर्ष | वनाग्नि की घटना | प्रभावित क्षेत्र | मौत |
2014 | 515 | 930 | 01 |
2015 | 412 | 701 | 00 |
2016 | 2,074 | 4,433 | 06 |
2017 | 805 | 1,244 | 00 |
2018 | 2,150 | 4,480 | 00 |
2019 | 2,158 | 2,981 | 01 |
2020 | 2,158 | 172 | 02 |
2021 | 135 | 3,943 | 08 |
2022 | 2,813 | 3,425 | 02 |
2023 | 773 | 933 | 03 |
2024 | 1,144 | 1,574 | 06 |