“पिरुल के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने पर, व्यक्ति अब प्रति महीने 2500 से 3000 रुपये कमा सकेंगे!”
यदि सरकार पिरुल के प्रस्ताव को मंजूरी देती है, तो एक व्यक्ति प्रति 2500 से 3000 रुपये की आय प्राप्त कर सकेगा। प्रदेश के 10 जिलों में 15.25% चीड़ वन हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिरुल को 50 रुपये प्रति किग्रा खरीदने का प्रस्ताव बनाया है। प्रस्ताव पर सरकार की मंजूरी मिलने के बाद स्थानीय लोग पिरूल से प्रतिदिन 2500 से 3000 रुपये की कमाई कर सकते हैं। प्रमुख सचिव वन ने प्रस्ताव वन विभाग से मांगा था। शासन को प्रस्ताव भेजने की पुष्टि प्रमुख वन संरक्षक डॉ. धनंजय मोहन ने की है।
प्रदेश के 10 जिलों में 15.25 फीसदी वन क्षेत्र चीड़ बाहुल्य है। सरकार दाम बढ़ाकर लोगों को ज्यादा से ज्यादा पिरुल उठाने के लिए प्रेरित करना चाहती है ताकि चीड़ वनों में आग लगने की घटनाओं पर काबू पाया जा सके। राज्य में हर साल सैकड़ों हेक्टेयर वन क्षेत्र आग की चपेट में आ जाता है। इससे वन संपदा को ही नहीं रिहायशी इलाकों में जनहानि का खतरा बना रहता है। इस वर्ष ग्रीष्म ऋतु में वनाग्नि की कई बड़ी घटनाएं हुईं। वनाग्नि भड़काने में ज्वलनशील पिरुल की बड़ी भूमिका है।
अभी तीन रुपये प्रति किग्रा है पिरुल की कीमत
अभी वन विभाग पिरुल तीन रुपये प्रति किग्रा खरीदता है। योजना की शुरुआत में पिरुल एक रुपये में खरीदा गया था। उसके बाद इसे दो रुपये कर दिया गया। पिरुल इकट्ठा करने की योजना की कीमत कम होने के कारण ग्रामीणों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई।
50 रुपये हुआ तो बड़ी संख्या में जुटेंगे लोग
वन विभाग का मानना है कि अगर पिरुल का मूल्य 50 रुपये प्रति किग्रा होता तो बहुत से लोग इस योजना में शामिल होते। वन विभाग का अनुमान है कि चीड़ बाहुल्य क्षेत्रों में 400 से 600 किग्रा प्रति हेक्टेयर पिरुल गिरता है। 50 से 60 किग्रा पिरुल को एक दिन में एक व्यक्ति एकत्रित कर निकट के केंद्र में ला सकता है। यदि 50 रुपये प्रति किग्रा की कीमत मिलती है तो वह प्रति दिन 2500 से 3000 रुपये की कमाई करेगा। योजना से बहुत से स्थानीय लोग जुड़ने की संभावना है क्योंकि यह एक बड़ा सौदा है।
योजना के लिए हर साल चाहिए 250 करोड़ रुपये
योजना कीमत बढ़ाने से बेशक दिलचस्प होगी, लेकिन इसे लागू करने के लिए सरकार को हर साल 250 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। विभागीय आकलन के अनुसार, राज्य के वनों में हर साल दो लाख टन पिरुल गिरते हैं। जंगल से पांच करोड़ किग्रा (या 25 प्रतिशत) पिरुल भी एकत्रित हुआ था, इसलिए २५० करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी।
भंडारण केंद्र और उत्पादन यूनिट बनानी होगी
बड़ी मात्रा में पिरुल एकत्र करने के साथ-साथ उत्पादन और भंडारण संयंत्र भी बनाने होंगे। चीड़ बाहुल्य वन क्षेत्रों में पिरुल भंडारण केंद्रों को खोला जाएगा। पिरुल को जमा करने और तुरंत इस्तेमाल करने की व्यवस्था करनी होगी। इसके लिए बिक्रेट्स और पिरुल से निर्मित पैलेट्स के लिए रेंज स्तर पर एक-एक यूनिट बनानी होगी। इसके लिए धन भी चाहिए होगा।
वनों में मानवीय दबाव और संघर्ष बढ़ने का खतरा भी
वन विभाग ने प्रस्ताव में चिंता व्यक्त की है कि योजना के आकर्षक होने के बाद वनों पर मानवीय दबाव बढ़ेगा। जंगलों में अधिक आवागमन होने से पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है और वन्यजीवों के वास स्थानों में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ सकती हैं।