क्या है इतिहास, गंगोत्री व यमुनोत्री धाम के बारे में, क्या कहते हैं पुराण।

गंगोत्री व यमुनोत्री धाम !

क्या कहते हैं पुराण ….. क्या है इतिहास ?

गंगोत्री और यमुनोत्री धाम, उत्तराखंड के चार धाम यात्रा के प्रथम दो पवित्र पड़ाव, हिंदू धर्म में अत्यंत पूजनीय हैं। ये दोनों तीर्थस्थल क्रमशः माँ गंगा और माँ यमुना को समर्पित हैं, जिन्हें जीवनदायिनी नदियों के रूप में पूजा जाता है। इनके कपाट हर वर्ष अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर खुलते हैं और दीपावली के आसपास बंद होते हैं। आइए, इन दोनों धामों के प्राचीन इतिहास और पौराणिक महत्व को गहराई से समझें।

गंगा भागीरथी पौराणिक कथा

गंगोत्री से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा राजा सगर और उनके पौत्र भगीरथ की है। पुराणों के अनुसार, राजा सगर ने अपने वर्चस्व की घोषणा के लिए अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ का घोड़ा देवराज इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। राजा सगर के 60,000 पुत्रों ने घोड़े की खोज में मुनि के आश्रम पर आक्रमण किया, जिससे क्रुद्ध कपिल मुनि ने उन्हें भस्म कर दिया। उनके पौत्र भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष दिलाने के लिए कठोर तपस्या की और माँ गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगवान शिव को प्रसन्न किया। शिव ने गंगा के प्रचंड वेग को अपनी जटाओं में समेटकर धीरे-धीरे पृथ्वी पर उतारा। यही कारण है कि गंगोत्री में एक जलमग्न प्राकृतिक शिवलिंग भी श्रद्धालुओं के लिए दैवीय अनुभूति का केंद्र है।

गंगोत्री मंदिर का इतिहास

गंगोत्री मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी की शुरुआत में गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने करवाया था। बाद में, 20वीं शताब्दी में जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। यह मंदिर सफेद ग्रेनाइट के चमकदार पत्थरों से निर्मित है और इसकी वास्तुकला सादगी के साथ भव्यता का संगम है। मंदिर के निकट भगीरथ शिला, जहाँ भगीरथ ने तपस्या की थी, और गंगा की धारा की पूजा प्राचीन काल से होती रही है। प्रारंभ में, यहाँ कोई स्थायी मंदिर नहीं था; सेमवाल पुजारी गंगा की धारा और मूर्तियों की पूजा भागीरथी शिला के पास एक मंच पर करते थे।

यमुना नदी की पौराणिक कथा

यमुना को सूर्य देव की पुत्री और यमराज व शनिदेव की बहन माना जाता है। पुराणों में यमुना को सूर्यतनया या कालिंदी कहा गया है। एक कथा के अनुसार, यमुना ने अपने भाई यमराज को छाया के अभिशाप से मुक्त करने के लिए कठोर तपस्या की और उन्हें वरदान दिया कि जो भी यमुना के पवित्र जल में स्नान करेगा, वह अकाल मृत्यु और यमलोक की यातनाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करेगा। भाई दूज के दिन यमुना स्नान का विशेष महत्व है।

एक अन्य कथा में, यमुनोत्री में ऋषि असित मुनि का आश्रम था। वृद्धावस्था में गंगोत्री तक जाने में असमर्थ होने पर, उन्होंने यमुना की तपस्या की, जिसके फलस्वरूप गंगा की एक धारा यमुनोत्री में प्रकट हुई। इसीलिए यमुना को गंगा की वैमातृक बहन भी कहा जाता है। यमुनोत्री के निकट सूर्यकुंड, एक तप्त जल स्रोत, भी पौराणिक महत्व रखता है, जहाँ श्रद्धालु प्रसाद के रूप में चावल और आलू पकाते हैं

यमुनोत्री मंदिर का इतिहास

यमुनोत्री मंदिर का प्रारंभिक निर्माण 1839 में टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रताप शाह ने करवाया था, लेकिन यह बाढ़ और भूकंप से नष्ट हो गया। वर्तमान मंदिर 19वीं शताब्दी में जयपुर की महारानी गुलेरिया ने बनवाया, जिसका बाद में पुनर्निर्माण हुआ। मंदिर के प्रांगण में दिव्यशिला, एक विशाल शिलाखंड, पूजनीय है। मंदिर सादगीपूर्ण वास्तुकला के साथ प्रकृति की गोद में बसा है, और यहाँ गर्म जल के स्रोत (सूर्यकुंड) प्रकृति के चमत्कार को दर्शाते हैं।

शिशपाल गुसाईं की फेसबुक वाल से।